Reservation Reality: आरक्षण के मिथक, सच्चाई और भविष्य Explained
आरक्षण की वास्तविकता – मिथक, सच और भविष्य भारतीय लोकतंत्र की सबसे चर्चा में रहने वाली व्यवस्था है — आरक्षण । यह शब्द सुनते ही समाज कई हिस्सों में बंट जाता है। कोई कहता है कि आरक्षण देश की प्रगति में बाधा है, तो कोई इसे दलित-बहुजन समाज के सशक्तिकरण की रीढ़ मानता है। लेकिन इन बहसों के बीच सच्चाई क्या है? आरक्षण की वास्तविक ज़रूरत क्या रही? इसके बारे में कौन-कौन से मिथक फैले हुए हैं? और भविष्य में यह व्यवस्था किस दिशा में जाएगी? यह सभी सवाल आज भी उतने ही ज़रूरी हैं जितने संविधान बनने के समय थे। आरक्षण क्यों बना? — ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आरक्षण अचानक जन्मी कोई नीति नहीं है। भारत का सामाजिक ढांचा हजारों वर्षों तक वर्ण-जाति आधारित असमानताओं पर टिका रहा। दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदायों को शिक्षा तक पहुँच नहीं दी गई। सरकारी नौकरियों का द्वार उनके लिए लगभग बंद था। सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक अवसरों पर ऊँची जातियों का एकाधिकार था। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में स्पष्ट कहा था कि — “समान अवसर तभी संभव है जब centuries of inequality को सुधारने के लिए विशेष प्रावधान किए ज...